जग जो सूक्ष्म हो रहा है मन हत से क्षयं हो रहा क्षेत्री का क्षूद्र ज्ञान से मगर शय्या टूटेगी बन शरणार्थी, क्योंकि अस्तित्व है यहां स्कन्द के पिता का हां, अस्तित्व है यहां महाकाय की माता का ll चक्षु जो बता रही चरित मनुष का जीवलोक जी रहा, ले सहारा माया का मगर मरण न इसका ऐसे सरल होगा, क्योंकि अस्तित्व है यहां भी भक्तों के महाकाल का हां, अस्तित्व है यहां भक्तों की मां कालिका का ll जीर्णानि हुआ शरीर पर यह मुक्ति न चाहता है हो इंद्रिय वश में, यह नई-नई इच्छा उभारता है होगी इच्छा नष्ट इसकी, जब भक्ति रस उवाचेगा, क्योंकि जगत में अस्तित्व है यहां भी प्रभु अतीन्द्रिय का हां, अस्तित्व है यहां भी जगदीश्वरी मां आर्या का ll
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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