जन जो सभी अघं से लीपे हुए है
वे जग के अकीर्ति अणु हुए है,
ऐसी ओजस नहीं उनमें जो
अब माथे उनके चमकते हो,
देखो नेत्र अब तो उनके केवल
जैसे ऐश्वर्य के लिए दमकते हो,
मगर इस जग में कोई कंठ तो ऐसा होगा जो
भक्ति रस में लय रसता हो,
हर पल चित्तात्मा जिसकी
प्रभु नामस्मरण करती हो ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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