ऋषि मुनियों का वास जहां, घोर तपस्या करते जहां
अरुण नाम उसे दैत्य का, ब्रह्म तपस्या लीन जहां
पा अजर अमर वरदान वह, छीना स्वर्ग सिंहासन वह
त्राहि त्राहि करते फिरे देव, मिले न आसान इनको कोई
विनाश करें इस दैत्य का, ऐसी मां इन आंखन होई
भौंर भौंर लिपटे उड़े, देख बन वासी मां, अरुण होश उड़े
कर अंत अरुण का मां ने, देव सासन संभाली देहन में
मां की अक्षुओं के नीर से, वीरान धरा फिर हरि बनी
वास किया जिस मिट्टी पे, पिंड बनभौरी नाम इस मां पे ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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