साधना जिनकी सरल नहीं
दिन-रात्रि का प्रभाव नहीं
जीवन-मरण से नाता नहीं
आदि-अंत से मोल नहीं
यही वो दिगंबर नाथ है
अजन्मे शंकर भोलेनाथ है
है सृष्टि के संघारकर्ता
भक्त प्रिय वरदान करता
त्रिशुलधारी वो त्रिलोचन है
नीलकंठ वो कपालधारी है
भभूत रमे वो अघोरी है
गंगा बहे वो जटाधारी है
श्वेत चंद्र सजे माथे पर
वो मेरे आदिगुरु आशुतोष है ।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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