सर: बहादे प्रेम का मुझपे ।
दया फल एक तेरी तपसी का मुझपे ।।
रिष्यत: जग मुझे या परीक्षा तेरी ?
बांटू तुझे गवाक्षो: से-प्रकोष्ठेषु की मेरी ।।
न बिभ: मुझे काल का-हो तेरा ।
भृत्य: मैं तेरा-जग का तेरा ।।
यथा प्रकृति: म प्राणवायु: वाति ।
एवा उर में मेरे तू प्रतिवसति ।।
ए उपर: मैं अध: हूं ।
जग कोलाहलम् से मृत हूं ।।
एक: बचन मेरा घौश्च: ।
कुर्वित भस्म मुझे, आऊं संग तेरे ।।
न विस्मय: मुझे-न विस्मृत्य प्रण: मेरा ।
चानृतं जग-सत्य तु, हर्ष: मुझे है संग तेरा ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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