जब यह नील मनुष त्रिनेत्र खोले
सृष्टि में तब तब प्रलय होले
यह वही अतिकाय करलं रूप है
यह वही विकराल तांडव नृत्य है
जिसे देख तीनों लोक देव भी कांपे
सृष्टि का कण कण भीषण विनाश भांपे
एक स्वरूप और अघोर उसका
कपाल माल साजे उसको
हो अनंत निद्रा में लीन वह
करता ध्यान स्मरण वह ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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