हे महादेव, आशुतोष !
तेरे माथे पर गंगा विराजे,
गले में तेरे सृप है साजे
जब तू अपने त्रिनेत्र खोले,
जटा-जुट से भभुति होले
तेरे कंठ में नील विष समाए,
हे मृत्युंजय, हे शिवाय
रुद्र रूप में तेरा
साकार स्वरूप उभरता है
हे महादेव, आशुतोष! ,
हर रूप तुझ पर निखरता है ।।
हे महादेव, आशुतोष !
ध्यान में लिपटे-
हे महायोगी, हे मेरे शंकरा
अर्धनारीश्वर में प्रेम तुम्हारा,
ज्वाला है त्रिनेत्रा
वीर का भाव है भैरव,
रुद्र और त्रिलोचना ।
फिर शत्रु भी तो तुम्हारा
मौत में बिखरता है
हे महादेव, आशुतोष! ,
हर रूप तुझ पर निखरता है ।।
हे महादेव, आशुतोष !
गंगाधर-गंगा धारा बांधते,
नृत्य लीला नटराज साधते
सागर का साक्षात्कार करते,
दक्षिणामूर्ति ज्ञान उपदेश साधते
देवो के देव महादेव बतलाते,
भोलेनाथ भोले दिखलाते
हे कैलाशपति,
सृष्टि का हर जीव
तुझ पर बिखरता है
हे महादेव, आशुतोष! ,
हर रूप तुझ पर निखरता है ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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