हे प्रभु! मुझको इतना सामर्थ्य देना
धर्म, स्वधर्म, पुरुषार्थ खातिर
मानस लोक आधार बना देना ।
आनंद जो मिलता तेरी स्वाध्याय उपासना से
मुझ मूढ़ को अप्त साधक बना देना ।।
जिसमें हो अनंत प्रज्ञा धारण
वो नाद मुझको सुना देना
वेद, प्रकृति, चित्त, भाव हो शामिल
तुम वो तत्व मुझको बना देना ।
हे प्रभु! मुझको इतना सामर्थ्य देना
मुझ मूढ़ को अप्त साधक बना देना ।।
अद्भुत है यह अरुण रवि वंदना
मानुष बाग में सत्य योग-साधना
इस साधना का तुम मुझको
प्रभु पुण्य दीक्षा करा देना ।
हे प्रभु! मुझको इतना सामर्थ्य देना
मुझ मूढ़ को अप्त साधक बना देना ।।
हे कैलाशपति, तेरी भांति
मुझको अचल बना देना
तन-मन मेरा ईश्वर प्राणिधान बना देना ।
हे प्रभु! मुझको इतना सामर्थ्य देना
मुझ मूढ़ को अप्त साधक बना देना ।।
~ © कैलाश जांगड़ा बनभौरी (K. J. Banbhori)
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